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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

व्यावसायिक निर्देशन का अर्थ

संसार में भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्य और व्यवसाय हैं। सभी प्रकार के व्यक्ति सभी कार्यों को नहीं कर सकते। सभी कार्यों और व्यवसायों से सम्बन्धित योग्यताएँ सभी व्यक्ति में समान नहीं होतीं। किसी विषय या व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में कुछ जन्मजात गुणों का होना आवश्यक होता है। व्यक्ति के इन जन्मजात गुणों के कारण ही कोई व्यक्ति एक सफल डॉक्टर, प्रोफेसर, इन्जीनियर, प्रशासक, सैनिक आदि बनता है। व्यक्ति में निहित गुणों, योग्यताओं, रुचियों और क्षमताओं के अनुसार जब व्यक्ति कोई विषय चुनता है तो उसे उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त होती है। व्यक्ति में निहित इन विभिन्न गुणों के अनुसार किसी विषय का चुनाव करने में सहायता देने के कार्य को व्यावसायिक संगठन कहा जाता है। व्यावसायिक निर्देशन का सबसे पहले प्रयोग सन् 1908 में फ्रैंक पारसन नामक व्यक्ति ने एक रिपोर्ट में किया था।

मनुष्य के सामाजिक स्तर और प्रतिष्ठा को बनाने में उसके द्वारा अपनाए गए व्यवसाय की प्रमुख भूमिका होती है। व्यक्ति में कुछ जन्मजात गुण होते हैं और कुछ गुणों और योग्यताओं को वह वातावरण के सम्पर्क में आकर सीखता है। इसके अतिरिक्त कुछ योग्यताओं, कुशलताओं और दक्षताओं को वह विशिष्ट प्रकार का व्यवसाय प्राप्त करने के उद्देश्य से अर्जित करता है। व्यक्ति में निहित इन विभिन्न गुणों के अनुसार किसी भी व्यवसाय का चुनाव करने में सहायता देने के कार्य को व्यावसायिक निर्देशन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति की जन्मजात शक्तियों एवं प्रशिक्षण के द्वारा अर्जित क्षमताओं को व्यवस्थित करके किसी भी व्यवसाय को अपनाने में दी जाने वाली सहायता है।

परिभाषाएँ

व्यावसायिक निर्देशन के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न विचार प्रकट किए हैं। व्यावसायिक निर्देशन की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) मायर्स के अनुसार, "व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति को अपने व्यवसाय से सम्बन्धित कुछ निश्चित कार्यों को स्वयं करने में सहायता देने की प्रक्रिया है।"
(2) क्रो एवं क्रो के अनुसार, "व्यावसायिक निर्देशन की व्याख्या साधारणतः उस सहायता के रूप में की जाती है, जो छात्रों को किसी व्यवसाय को चुनने, उसके लिए तैयारी करने और उसमें उन्नति करने के लिए दी जाती है।"
(3) राबर्ट्स के अनुसार, "व्यावसायिक निर्देशन का सम्बन्ध उन समस्याओं और विधियों से है, जो किसी व्यवसाय को चुनने और उसमें समायोजित होने में निहित होती हैं।”
(4) अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन के अनुसार, "व्यावसायिक निर्देशन एक प्रकार की सहायता है जो किसी व्यक्ति को इसलिए दी जाती है कि वह अपनी समस्याओं का समाधान कर सके, व्यवसाय का चुनाव कर सके। यह व्यक्तिगत विशेषताओं तथा उनके व्यावसायिक अवसर को सामने रखते हुए व्यक्ति को प्रगति करने में सहायता प्रदान करता है।"
(5) नेशनल वोकेशनल गाइडेन्स एसोसिएशन के अनुसार, "किसी भी व्यवसाय के चयन, प्रशिक्षण, उसमें प्रवेश और विकास के लिए उपयुक्त सलाह, अनुभव तथा सूचना प्रदान करना ही व्यावसायिक निर्देशन कहलाता है।"
(6) सुपर के अनुसार, "व्यावसायिक निर्देशन व्यक्तियों को विभिन्न व्यवसायों में समायोजित होने में सहायता प्रदान करता है और मानव शक्ति का प्रभावपूर्ण ढंग से उपयोग करके सामाजिक अर्थव्यवस्था को सरलतम ढंग से चलाने में सुविधाएँ देता है।"
(7) सुपर डानलड के अनुसार, "व्यावसायिक निर्देशन किसी व्यक्ति को अपना उचित तथा एकीकृत चित्र स्वीकार तथा विकसित करने एवं संसार में अपना योगदान जानने में सहायता करना है। इसका उद्देश्य उसकी वास्तविकता के विरुद्ध धारणा की परीक्षा करना है तथा उसे वास्तविकता में इस प्रकार बदला है कि वह स्वयं संतुष्ट हो सके और समाज को लाभ पहुँचा सके।"

व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता और महत्त्व

 

वर्तमान युग में व्यावसायिक निर्देशन की अत्यन्त आवश्यकता है। जैसे-जैसे बौद्धिक प्रगति के कारण नए-नए व्यवसायों की खोज निरंतर होती जा रही है वैसे-वैसे व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता में अधिक बढ़ोत्तरी होती जा रही है। विभिन्न दृष्टिकोणों से व्यावसायिक निर्देशन की निम्नलिखित कारणों से आवश्यकता है-

(1) व्यवसायों की जटिलता की दृष्टि से आवश्यकता - व्यावसायिक निर्देशन के अभाव में व्यक्ति के लिए उचित व्यवसाय को चुनना बहुत कठिन है। इसका कारण यह है कि विज्ञान के निरन्तर नए ज्ञान और आविष्कारों के कारण नए-नए उद्योग खुलते जा रहे हैं। बहुत से व्यवसाय बिल्कुल नए हैं और जो पुराने हैं वे भी नए रूप लेते जा रहे हैं। विभिन्न प्रकार के व्यवसायों की जटिलता के कारण व्यक्ति के उपयुक्त व्यवसाय को चुनना अत्यन्त कठिन हो गया है। इसलिए व्यवसायों की जटिलता के.. कारण व्यक्ति को उचित व्यवसाय चुनने के लिए व्यावसायिक निर्देशन की नितान्त आवश्यकता है।

(2) आर्थिक और सामाजिक दशाओं में परिवर्तन के कारण - पहले लोग अपने खानदानी व्यवसायों को अपना लेते थे, परन्तु अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं। नए-नए उद्योग-धन्धों की स्थापना और जनसंख्या की निरन्तर वृद्धि के कारण आर्थिक और सामाजिक दशाओं में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं और ऐसी स्थिति में व्यक्ति के लिए यह निर्णय करना कठिन हो जाता हैं कि कौन-सा व्यवसाय भविष्य में उसके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। व्यावसायिक निर्देशन की सहायता से इस समस्या को सरलतापूर्वक हल किया जा सकता है।

(3) व्यावसायिक निर्देशन व्यक्तिगत और समाजगत दोनों ही दृष्टिकोणों से आवश्यक - व्यावसायिक निर्देशन के बिना व्यक्ति ऐसे व्यवसायों का चुनाव भी कर सकता है जिससे कि व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों का पतन हो सकता है। जो व्यवसाय व्यक्ति की रुचियों, योग्यताओं और क्षमताओं के अनुकूल नहीं होता उसे उस व्यवसाय को करने में संतोष और आनन्द की प्राप्ति नहीं होती। फलस्वरूप वह निराश, उदासीन और असंतुष्ट हो जाता है। इस प्रकार की स्थिति में वह न तो स्वयं का विकास कर सकता है और न ही समाज के साथ अपने आपको उचित रूप से समायोजित कर पाता है।

(4) युवकों में अनुशासन के दृष्टिकोण से - युवकों को उनकी रुचि, और योग्यता के अनुसार व्यवसाय न मिलने के कारण उनका काम में मन नहीं लगता। अपने व्यवसाय से संतुष्टि न मिलने के कारण उनमें निराशा, उदासीनता और आक्रामकता की भावना पैदा हो जाती है जिसके कारण वे हड़ताल, तोड़फोड़ तथा तालाबन्दी जैसे अनुशासनहीनता से सम्बन्धित व्यवहार करते हैं। युवकों में इस अनुशासनहीनता की समस्या को हल करने के लिए व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता है।

(5) स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आवश्यकता - स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी व्यावसायिक निर्देशन की अति आवश्यकता है। जो व्यवसाय व्यक्ति के स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं होता है उससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिसके कारण व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है। अतः व्यक्ति के स्वास्थ्य के अनुकूल व्यवसाय का चुनाव करने के लिए व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता है।

(6) व्यवसायों की संख्या में निरन्तर वृद्धि के कारण - आधुनिक युग में विज्ञान और टेक्नोलॉजी की उन्नति के कारण व्यवसायों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। बहुत से विद्यार्थी स्कूल और कॉलेज की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् निर्देशन के अभाव में अपनी रुचि, योग्यता और क्षमता के अनुसार व्यवसाय न मिलने के कारण व्यवसाय में उचित उन्नति नहीं कर पाते जिसके कारण उन्हें निराशा और चिन्ता होती है। इस समस्या को दूर करने के लिए व्यावसायिक निर्देशन जरूरी है।

(7) व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति के आर्थिक लाभ के दृष्टिकोण से आवश्यक है - व्यावसायिक निर्देशन के अभाव में व्यक्ति अधिकतर ऐसे व्यवसायों को चुन लेते हैं जो कि इनकी रुचि और योग्यता के अनुकूल नहीं होता है। परिणामस्वरूप वे उस व्यवसाय को कुछ समय तक करते रहने के पश्चात् नए व्यवसाय की तलाश शुरू कर देते हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यवसाय प्रारम्भ कर देते हैं जिसके कारण उनको काफी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। इस आर्थिक हानि से बचने के लिए व्यावसायिक निर्देशन आवश्यक है।

(8) व्यवसाय प्राप्त करने में सहयोग के दृष्टिकोण से - साधारण तौर पर यह देखा जाता है कि अनेक व्यक्ति अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् भी नौकरी प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इसका कारण है कि वे आरम्भ से अपनी शिक्षा, अपनी क्षमताओं, रुचियों तथा समाज की आवश्यकताओं के अनुसार दी हुई योजनानुसार प्राप्त नहीं कर पाते हैं जिसके कारण उनमें निराशा की भावना जन्म ले लेती है। ऐसी स्थिति में व्यावसायिक निर्देशन अत्यावश्यक है।

(9) मानव शक्तियों के प्रयोग के दृष्टिकोण से - व्यावसायिक निर्देशन बिना मानव शक्तियों की खोज सम्भव नहीं है। प्रत्येक समाज में अनेकों ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें एक या एक से अधिक अभूतपूर्व शक्तियाँ निहित होती हैं। इस प्रकार की शक्तियों वाले व्यक्ति समाज को प्रगति की राह पर ले जाते हैं। व्यावसायिक निर्देशन इस प्रकार की शक्तियों वाले व्यक्तियों की खोज करता है और साथ ही मानव शक्तियों के अधिकतम प्रयोग की योग्यता प्रदान करता है।

(10) आर्थिक दृष्टिकोण से आवश्यकता - जब अरुचिकर व्यवसाय में नवयुवक विवश होकर कार्य करता है तो वहाँ उत्साह और लगन कम होने से उत्पादन कम होता है और कार्य में निपुणता का अभाव रहता है। इससे नवयुवक तथा देश की आर्थिक अवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः इस आर्थिक अवस्था से देश, समाज एवं युवक को बचाने हेतु निर्देशन की आवश्यकता पड़ जाती है। व्यावसायिक निर्देशन से नौकरी देने वालों को बहुत आर्थिक लाभ होता है, क्योंकि उसके कर्मचारी अपने काम से संतुष्ट होते हैं।

(11) व्यक्ति के निजी जीवन की सफलता एवं संतोष की दृष्टि से - यदि व्यक्ति का विकास. समुचित रूप से होता है और उसे अपनी रुचि एवं क्षमता के अनुरूप व्यवसाय चयन करने में सफलता होती है तो उसे सर्वांगीण विकास प्राप्त करने एवं सुखी जीवन व्यतीत करने में सफलता मिलती है। इस कारण वह समाज का एक अच्छा सदस्य बनता है। जीवन में जितने अधिक व्यक्ति इस प्रकार सामंजस्य प्राप्त करते हैं, समाज की आर्थिक एवं सांस्कृतिक समृद्धि उसी अनुपात में बढ़ती है।

(12) स्वामी के वित्तीय दृष्टिकोण से कार्य देने वाला - जब एक कुशल व्यक्ति को काम पर लगाता है तो उत्पादन तथा निपुणता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और स्वामी को अच्छा लाभ होता है। यदि कोई अयोग्य व्यक्ति काम पर रखा जाता है तो उसके द्वारा ठीक कार्य नहीं हो सकता और स्वामी को इस कारण आर्थिक नुकसान होता है। व्यवसाय निर्देशन से इस बात को रोका जा सकता है। उपयुक्त व्यक्ति ही निर्देशन की सहायता से कार्य पर रखा जाता है।

(13) मानवीय शक्ति का सही उपयोग तथा विकास - हमारे देश में एक बहुत बड़ी जनशक्ति है। इस मानवीय शक्ति का सदुपयोग हो सके इसके लिए व्यवसाय निर्देशन की सहायता से प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यताओं, शक्तियों और प्रतिभाओं का ज्ञान करवाया जाता है। इस कारण से सब प्रकार के व्यक्तियों को खोज कर उनकी शक्ति से देश को लाभ हो सकता है।

(14) छात्रों के भावी जीवन में स्थिरता लाना - विद्यालय छोड़ने के बाद व्यक्ति जब व्यवसाय में प्रवेश करता है तो नए वातावरण में वह समायोजित नहीं हो पाता। अतः बच्चों को छात्र जीवन में ही कार्य जगत का पर्याप्त ज्ञान प्रदान कर दिया जाए जिससे छात्र जीवन के पश्चात् व्यवसाय जीवन में स्थिरता ला सकें और उन्हें शीघ्र ही अपना व्यवसाय बदलना न पड़े। अतः उनके भावी जीवन को स्थिर बनाने के लिए निर्देशन की आवश्यकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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